मूर्ति प्रतिष्ठा
परिचय
मूर्ति प्रतिष्ठा एक धार्मिक और संस्कृतियों से जुड़ी प्रथा है, जिसमें किसी देवता की मूर्ति को पवित्र स्थान पर स्थापित करने की विधि को “प्रतिष्ठा” कहा जाता है। यह एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है, जिसे मंदिरों में, घरों में या अन्य पवित्र स्थानों पर भगवान की मूर्ति की स्थापना से पहले किया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मूर्ति को दिव्य शक्ति से भरपूर करना और उसे पूजा के योग्य बनाना है।
मूर्ति प्रतिष्ठा का महत्व
- दिव्य शक्ति का संचार: प्रतिष्ठा की प्रक्रिया के माध्यम से मूर्ति में दिव्य शक्ति का संचार किया जाता है।
- पूजा के योग्य बनाना: मूर्ति प्रतिष्ठा पूजा के लिए मूर्ति को उपयुक्त और योग्य बनाती है।
- धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ: यह घर और मंदिर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करता है।
- संगठन और सामूहिकता: यह प्रक्रिया समुदाय को एकजुट करने का एक अवसर देती है।
मूर्ति प्रतिष्ठा की विधि
- स्थान का चयन: पवित्र और शांत स्थान का चयन करें।
- मूर्ति का चयन: भगवान की सही प्रतिमा का चुनाव करें।
- सफाई और शुद्धि: मूर्ति को गंगा जल और अन्य शुद्ध सामग्री से शुद्ध करें।
- पवित्र वस्त्रों का चयन: मूर्ति के लिए शुभ रंगों के वस्त्र अर्पित करें।
- मंत्रों का उच्चारण: मूर्ति प्रतिष्ठा के दौरान विशेष मंत्रों का जाप करें।
- हवन और यज्ञ: यज्ञ के माध्यम से वातावरण को शुद्ध और दिव्य बनाएं।
- प्रसाद और पूजा अर्चना: प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति की नियमित पूजा करें।
मूर्ति प्रतिष्ठा कब करनी चाहिए?
मूर्ति प्रतिष्ठा के लिए शुभ तिथियाँ जैसे नवरात्रि, दीपावली, गणेश चतुर्थी, शिवरात्रि, और पूर्णिमा के दिन उपयुक्त माने जाते हैं। यह प्रक्रिया धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है।
निष्कर्ष
मूर्ति प्रतिष्ठा एक अत्यधिक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो किसी भी देवता की मूर्ति को पूजा के योग्य बनाने के लिए किया जाता है। यह न केवल एक धार्मिक प्रक्रिया है, बल्कि यह घर, परिवार, और समाज में सकारात्मक ऊर्जा और भगवान की कृपा लाने का एक प्रभावी तरीका भी है।